मिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्मों में शामिल सूर्यवंशम की सबसे बड़ी पहचान
इसे चैनल पर बार-बार दिखाया जाना बन गई है. इसे लेकर सोशल मीडिया पर कई
बार ट्रोल भी किया जाता है. सोमवार को फिल्म ने 21 साल पूरे किए हैं. सवाल
यही उठता है कि आखिर सूर्यवंशम फिल्म में ऐसा क्या है कि इसे हर
दूसरे-तीसरे दिन दिखाया जाता है.
इसके दो कारण सामने आए हैं. पहला यह कि जिस साल फिल्म रिलीज हुई थी, उसी
साल मैक्स चैनल को लॉन्च किया गया था. दोनों को एक जैसा समय इंडस्ट्री में
होता जा रहा है. इसलिए चैनल के अधिकारियों का फिल्म से भावनात्मक लगाव
है. दूसरी वजह है कि चैनल ने इस फिल्म के अधिकार 100 सालों के लिए खरीदे
हैं. इसलिए इसे कभी भी दिखाने पर किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं है.
तीसरा यह भी कहा जा सकता है कि फिल्म को बेहद सराहा जाता है. अमिताभ
बच्चन ने इसमें बेहतरीन अदाकारी की थी. कहानी से लेकर इसकी एडिटिंग और
म्यूजिक तक दिलचस्प है.
बता दें कि फिल्म की मुख्य अभिनेत्री सौंदर्या रघु का निधन हो गया है.
17 अप्रैल, 2004 को बेंगलुरु के पास एक प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो गई थी.
डायरेक्टर नितिन कक्कड़ ने साल में फिल्म फिल्मिस्तान डायरेक्ट
की, जिसे बहुत सराहा गया. फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म के नेशनल अवार्ड से
भी सम्मानित किया गया. इसके बाद नितिन ने कुछ और फिल्में डायरेक्ट की,
जिनका नाम रामसिंह चार्ली और मित्रों है. मित्रों साल 2016 में आई तेलुगु
फिल्म पेली छुपूलू का हिंदी वर्जन है. फिल्म के ट्रेलर को काफी सराहा गया
है. पढ़िए समीक्षा.
कहानी:
फिल्म की कहानी गुजरात के रहने वाले जय (जैकी भगनानी) की है, इसने
इंजीनियरिंग की है, लेकिन पूरे दिन घर में बैठकर अजीब हरकतें करता है,
जिसकी वजह से जय के घरवालों को लगता है कि जब उसकी शादी हो जाएगी तो वह
जिम्मेदारियों पर ध्यान देने लगेगा और इसी चक्कर में जय के घरवाले अवनी
(कृतिका कामरा) से उसकी शादी की बात करते हैं. रिश्ता लेकर उनके घर पहुंच
जाते हैं. जय के साथ उसके दोनों दोस्त (प्रतीक गांधी और शिवम पारेख) हमेशा
उसके साथ रहते हैं. अवनी के साथ मुलाकात के बाद कहानी में बहुत सारे मोड़
आते हैं और अंततः एक रिजल्ट आता है जिसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी
पड़ेगी.
क्यों देख सकते हैं:
फिल्म की कहानी अच्छी है और स्क्रीनप्ले भी बढ़िया लिखा गया है. खास तौर
पर फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी दिलचस्प है और सेकंड हाफ में कहानी में थोड़ा
ठहराव आता है. फिल्मी गुजरात के फ्लेवर और वहां की जगहों को बड़े अच्छे
तरीके से डायरेक्टर नितिन कक्कड़ ने दर्शाया है जिसकी वजह से विजुअल ट्रीट
बढ़िया है. फिल्म का कोई भी किरदार लाउड नहीं है जो कि अच्छी बात है. फिल्म
का संवाद, डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी अच्छा है. कई सारे ऐसे पल भी आते हैं
जिनसे एक आम इंसान और मिडिल क्लास फैमिली कनेक्ट कर सकती है. जैकी भगनानी एक तरह से अपने सर्वश्रेष्ठ अभिनय में दिखाई देते हैं वही फिल्मों में डेब्यू करती हुई कृतिका कामरा ने
किरदार के हिसाब से बढ़िया काम किया है. नीरज सूद, प्रतीक गांधी, शिवम
पारेख और बाकी किरदारों का काम सहज है. फिल्म के गाने कहानी के साथ-साथ
चलते हैं और बैकग्राउंड स्कोर भी बढ़िया है. आतिफ असलम का गाया हुआ गाना
चलते चलते और सोनू निगम का गाना भी कर्णप्रिय है, वह रिलीज से पहले कमरिया
वाला गीत ट्रेंड में है जो कि देखने में भी अच्छा लगता है. एक तरह से
फिल्में कहानी के साथ-साथ ड्रामा इमोशन गाने और हंसी मजाक का फ्लेवर है जो
इसे संपूर्ण फिल्म बनाता है.
कमज़ोर कड़ियां:
फिल्म की कमजोर कड़ी इसका सेकंड हाफ है जो कि थोड़ा धीमे चलता है इसे दुरुस्त किया जाता तो फिल्म और भी क्रिस्प हो सकती थी. कुछ ऐसी भी जगह है
जहां कॉमेडी पंच बहुत जल्दी से आते हैं और निकल जाते हैं जिसकी वजह से शायद
वह हंसी का पल हर एक दर्शक को समझ में भी ना आए.
बॉक्स ऑफिस :
फिल्म की अच्छी बात यह है कि इस का बजट कम है और इसे रिलीज भी अच्छे
पैमाने पर किया जा रहा है. ट्रेलर से जिन्होंने इस फिल्म को देखने का मन
बना रखा है वह बिल्कुल भी निराश नहीं होंगे और वर्ड ऑफ माउथ से यह फिल्म
अच्छा मकाम हासिल कर सकती है.
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