Tuesday, September 11, 2018

भारत से बच्चा गोद लेने वाले इस कार्यक्रम के दोबारा शुरू

भारत से बच्चा गोद लेने वाले इस कार्यक्रम के दोबारा शुरू होने का फ़ायदा ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिकों को भी मिलने की उम्मीद है.
42 साल की जॉयलक्ष्मी और उनके पति मंजीत सिंह सैनी ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में रहते हैं. जॉयलक्ष्मी और मंजीत पिछले 8 साल से इस कार्यक्रम के दोबारा शुरू होने का इंतज़ार कर रहे हैं.
जॉयलक्ष्मी को साल 2008 में एंडोमीट्रियोसिस ऑपरेशन करवाना पड़ा था, इसी वजह से वो अब गर्भधारण नहीं कर सकतीं.
जॉयलक्ष्मी कहती हैं कि वे फ़िलहाल यह सोच रही हैं कि ऑस्ट्रेलिया में ही स्थानीय जगह से बच्चा गोद लें या फिर भारत के साथ शुरू होने वाले अडॉप्शन कार्यक्रम के तहत भारतीय बच्चे को गोद लें. sex
जॉयलक्ष्मी ने मां बनने के लिए सरोगेसी का रास्ता भी अपनाया लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पाईं.
जॉयलक्ष्मी कहती हैं, ''हमारे लिए बच्चा गोद लेना ही आख़िरी रास्ता है, साल 2010 में हम भारत से दो बच्चों को गोद लेना चाहते थे लेकिन फिर भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच इंटरकंट्री अडॉप्शन प्रोग्राम रोक दिया गया.''
मैरी जोन्स (बदला हुआ नाम) एक सिंगल मदर हैं. वे क्वींसलैंड के एक दूरस्त इलाक़े में रहती हैं.
अडॉप्शन कार्यक्रम के दोबारा शुरू होने पर मैरी कहती हैं, ''यह बहुत ही अच्छी ख़बर है लेकिन अभी हमें इसके शुरू होने का इंतज़ार करना होगा. मेरा 9 साल का बेटा है, वह यहां खुद को बहुत ही अकेला महसूस करता है, इसीलिए मैं भारत की एक लड़की को पिछले चार साल से गोद लेने पर विचार कर रही हूं.''
मैरी अपने पति के साथ भारत से न्यूज़ीलैंड आ गई थीं. पांच साल पहले वे अपने पति से अलग होकर ऑस्ट्रेलिया चली गईं.
मैरी एक नर्स हैं और जब वे भारत में थीं तो उन्होंने बेंगलुरू के एक अनाथालय में बच्चों की दुर्दशा देखी थी. वे चाहती थी कि कम से कम एक भारतीय बच्चे को गोद लेकर उसे अच्छी ज़िंदगी दें.
अडॉप्ट चेंज नामक एक ग़ैरलाभकारी संस्था की मुख्य कार्यकारी अधिकारी रेनी कार्टर कहती हैं कि अनाथालयों में रहने वाले बच्चों के साथ दुर्वय्वहार होने के कई सबूत मिले हैं.
रेनी कार्टर इस बारे में विस्तार से बताती हैं, ''बच्चा गोद देने के मामले में सबसे पहले यही कोशिश होती है कि उसे देश के भीतर ही किसी परिवार को गोद दिया जाए, हालांकि अगर किसी बच्चे को दूसरे देश के परिवार में गोद दिया जा रहा है तो यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि यह पूरी प्रक्रिया सुरक्षित, पारदर्शी और सही तरीके से हो जिससे बच्चे को अच्छा माहौल और परिवार मिल सके.
एआईएचडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार साल 2016-17 के दौरान ऑस्ट्रेलिया में सभी 69 हुए इंटर-कंट्री अडॉप्शन एशिया के देशों से ही हुए. इन देशों में ताइवान से सबसे ज़्यादा हुए, इसके अलावा फिलिपींस, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड से भी बच्चों को गोद लिया गया.यारह सितंबर 1893 को शिकागो में हुए विश्व धर्म संसद में विवेकानंद के भाषण की याद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी शिकागो में ही आठ सितंबर को एक भाषण दिया है.
11 सितंबर की जगह आठ सितंबर क्योंकि सप्ताहांत न हो तो काम छोड़कर अमरीका में भाषण सुनने लोग नहीं आते, और विश्व धर्म संसद की जगह विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया. आप मोहन भागवत के अंग्रेज़ी में दिए गए 41 मिनट का भाषण सुनेंगे तो आपको समझ में आएगा कि उन्होंने विवेकानंद से कोई प्रेरणा नहीं ली है.
पूरे भाषण के दौरान अमरीकी झंडा बैकग्राउंड में था, वहां न तो कोई भगवा ध्वज था, न ही तिरंगा.
बहरहाल, उन्होंने कई बातें कहीं जिन पर ग़ौर किया जाना चाहिए क्योंकि वो मामूली व्यक्ति नहीं हैं, संसार के सबसे बड़े एनजीओ के प्रमुख हैं जिसे भारत की मौजूदा सरकार अपनी प्रगति रिपोर्ट
मोहन भागवत ने कहा कि भारत में हमेशा से समस्त संसार का ज्ञान रहा है, भारत के आम लोग भी इन बातों को समझते हैं. इसके बाद उन्होंने एक दिलचस्प सवाल पूछा, "फिर क्या ग़लत हो गया, हम हज़ार साल से मुसीबत क्यों झेल रहे हैं?" इसका जवाब उन्होंने दिया कि ऐसा इसलिए हुआ कि 'हमने अपने आध्यात्मिक ज्ञान के मुताबिक जीना छोड़ दिया.'
ग़ौर करिए कि उन्होंने हज़ार साल की मुसीबत क्यों कहा? संघ का मानना है कि भारत के दुर्दिन अंग्रेज़ी राज से नहीं बल्कि मुसलमानों के हमलों से शुरू हुए, मुग़ल काल को भी वे मुसीबत का दौर मानते हैं.
दरअसल, ऐसे मौक़े याद नहीं आते जब संघ ने अंग्रेज़ी हुकूमत की आलोचना की हो, न अतीत में, न वर्तमान में. आलोचना के मामले में मुग़ल उनके प्रिय रहे हैं.
इसके बाद उन्होंने एक और दिलचस्प बात कही, "आज की तारीख़ में हिंदू समाज दुनिया का ऐसा समाज है जिसमें हर क्षेत्र के मेधावी लोग सबसे अधिक संख्या में मौजूद हैं." न जाने उन्होंने यह निष्कर्ष किस आधार पर निकाला कि हिंदू, अपने हिंदू होने की वजह से यहूदियों, ईसाइयों या मुसलमानों से अधिक प्रतिभाशाली हैं?ह हिंदू गौरव को जगाने की उनकी कोशिश थी, इसके फ़ौरन बाद उन्होंने कहा कि हिंदू एकजुट होकर काम नहीं करते, यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है. उन्होंने एक किस्सा सुनाया कि एकजुट होने के आह्वान पर हिंदू कहते रहे हैं कि "शेर कभी झुंड में नहीं चलते."
उन्होंने कहा, "जंगल का राजा, रॉयल बंगाल टाइगर भी अगर अकेला हो तो जंगली कुत्ते उसे घेरकर, हमला करके मार दे सकते हैं." उनके ऐसा कहते ही हॉल तालियों से गूंज उठा, उन्हें कहने-बताने की ज़रूरत नहीं पड़ी कि वे जंगली कुत्ते किसको कह रहे हैं. ये वही कुत्ते हैं जिनके पिल्ले गाड़ी के नीचे आ जाएं तो प्रधानमंत्री मोदी जी को दुख होता है.
"हिंदू होने पर गर्व करना चाहिए", "हिंदू ख़तरे में हैं" और "हिंदुओं को एकजुट होना चाहिए"... ये सब संघ का स्थायी भाव है. हिंदुओं को किससे ख़तरा है? हिंदुओं को किस लक्ष्य के लिए एकजुट होना चाहिए, किसके ख़िलाफ़ एकजुट होना चाहिए, इन सवालों के जवाब इशारों में समझाए जाते हैं, चुनाव जैसी विकट स्थितियों में ही मंच से क़ब्रिस्तान-श्मशान कहना पड़ता है.
पेश करती है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा की 'मातृसंस्था' है.

No comments:

Post a Comment