अब जबकि बीएस येदियुरप्पा चौथी बार
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हैं, वो एक ऐसी उपलब्धि हासिल
करने जा रहे हैं जिसे भाजपा के शीर्ष नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल
कृष्ण आडवाणी भी हासिल नहीं कर सके.
लगता है कि येदियुरप्पा ने
भारत की सबसे ताकतवर जोड़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष और
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी अपने पक्ष में करने में कामयाबी हासिल
कर ली है. मोदी शाह की जोड़ी ने 75 साल पूरे होने पर लाल कृष्ण आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल का रास्ता दिखा दिया. लेकिन 76 साल के येदियुरप्पा को दरकिनार कर ऐसा नहीं किया जा सकता.
कर्नाटक में भाजपा के सबसे बड़े नेता ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह को भी चिट्ठी लिख कर राज्य में जनता दल सेक्युलर-कांग्रेस गठबंधन सरकार को सदन के पटल पर हराने के लिए समर्थन देने के लिए व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद दिया.
ये पत्र उस समय भेजे गए जब मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी विधानसभा में विश्वास मत हारने के बाद राज्यपाल वजुभाई वाला को अपना त्याग पत्र सौंपने के लिए राजभवन रवाना हुए. इन पत्रों का मक़सद ये बताना भी था कि येदियुरप्पा कमान संभालते हुए सभी स्थितियों पर लगातार नज़र बनाए हुए हैं और काम कर रहे हैं.
कांग्रेस के सिद्धारमैया के अलावा, बीजेपी के पास येदियुरप्पा पूरे राज्य में एकमात्र नेता हैं जिनकी पहुंच हर जगह है. इस मामले में भाजपा के हाथ बंधे हुए हैं. येदियुरप्पा के समर्थन का आधार काफ़ी हद तक उनका लिंगायत समुदाय है.
लिंगायत समुदाय का प्रभाव पूरे कर्नाटक में है जबकि एक दूसरी जाति वोक्कालिगाओं का असर कर्नाटक के दक्षिणी हिस्से तक सीमित है, जहां पर कम से कम, 2019 के लोकसभा चुनाव तक एचडी देवगौड़ा परिवार का बोलबाला रहा.
लिंगायत समुदाय का सबसे बुरा दौर वो था, जब 1989 में जब स्वर्गीय वीरेंद्र पाटिल को सिर्फ़ एक साल बाद मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था.
तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने उन्हें बेंगलुरु हवाई अड्डे पर मुख्यमंत्री पद से से हटा दिया था क्योंकि उन्हें पैरालिटिक स्ट्रोक हुआ था और वो आडवाणी की रथ यात्रा के बाद दावणगेर में फैले सांप्रदायिक दंगों को नियंत्रित करने में असफल रहे थे.
उस वक़्त से ही लिंगायत वोट जनता पार्टी का आधार रहा है और सालों बाद येदियुरप्पा के नेतृत्व में उसने निष्ठा बदल दी.
एक बीजेपी नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा, ''हम नहीं चाहते कि जैसा वीरेंद्र पाटिल के साथ हुआ, हमारे साथ भी वैसा ही हो. आपको याद होगा कि उसके बाद कांग्रेस कभी भी इस समुदाय से बड़े वोट हासिल नहीं कर सकी.'
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक संदीप शास्त्री इस विश्लेषण से सहमत नहीं हैं कि केंद्रीय नेतृत्व येदियुरप्पा का समर्थन करता है.
वो कहते हैं, "ऐसा नहीं लगता कि येदियुरप्पा को केंद्रीय नेतृत्व का बड़ा समर्थन हासिल है. 2014 में उन्हें केंद्र में मंत्री पद से वंचित कर दिया गया था और यह संकेत बहुत साफ़ था. कुल मिलाकर, मुझे लगता है कि वे सही तरीक़े से निर्वाचित होना चाहते हैं, जिसका मतलब है कि विधानसभा के लिए पूर्ण चुनाव."
वर्तमान स्थितियों में प्रो शास्त्री को राष्ट्रपति शासन और फिर साल के अंत तक चुनाव की उम्मीद है. वास्तविकता में जो मुकुट येदियुरप्पा पहनेंगे वो कांटों का ताज ही होगा.
कुमारस्वामी ने विश्वास मत पर बहस के दौरान विधानसभा में कहा, ''मैं आपको बता दूं कि जैसे ही मंत्रिमंडल का गठन होगा, आपको लगेगा कि बम धमाका हो गया है. व्यक्तिगत रूप से, मुझे लगता है कि जनता के पास जाना बेहतर विकल्प है.''
दरअसल, यह कुमारस्वामी का चेतावनी देने का तरीक़ा था कि जिन विद्रोहियों ने उनकी सरकार को गिराया है, वो उनके साथ भी वैसा ही करेंगे.
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